Friday, 30 May 2025

सर्व रोग के सिर्फ तीन कारण हैं

 अहितं त्रिविधो —--

अर्थे: असात्म्यै संयोग: काल: कर्म च दुष्कृतम् l

हीनाति मिथ्यायोगेन भिद्यते तत्पुनस्त्रिधा ll 35ll 

अष्टांगह्रदय सूत्रस्थान 12


प्रथम कारण - विषयोंका इंद्रियों से असात्म्य  संपर्क 


-शब्द, स्पर्श , रुप, रस, गंध इन विषयों के साथ इंद्रियों का बहोत ज्यादा, बहूत कम या विषम संपर्क होना 

5 इंद्रिये:- 

श्रोतेंद्रिय-ध्वनि ,शब्द की अनुभूति के लिए।

स्पर्शेंद्रिय- स्पर्श की अनुभूति के लिए। 

चक्षुरेंद्रिय-रूप ,दृश्य की अनुभूति के लिए।

रसनेंद्रिया -रस (स्वाद) की अनुभूति के लिए।

घ्राणेंद्रिय-गंध (खुशबू) की अनुभूति के लिए।

विषयोंसे बहुत ज्यादा , बहुत कम या विषम संयोग 

जैसे  तेज प्रकाश मे  किताब पढना , या बिलकुल मंद प्रकाश मे पढना,

या लेटे हुए- किताब आँखोंके बहुत नजदीक पढना l

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द्वितीय कारण - काल है 

-काल याने ऋतु. ऋतु के लक्षण अल्प, बहुत या विषम होना. 

 वय- जैसे बाल, वृद्धा 

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तृतीय कारण कर्म है 

इसी को प्रज्ञापराध कहते हैं l


प्रज्ञा= बुध्दी 

बुध्दी से अपराध होने से भी रोग होते हैl आयुर्वेद मे दस प्रकारके कर्मो की निंदा की है 

दस निंदित कर्म है - इन्हे त्याग दे 


हिंसास्तेया न्यथाकामं पैशुन्यं परुषानृते ll 21 ll

सम्भिन्नालापं व्या पा द म भिध्यां दृग्विपर्ययम् l

पापं कर्मेति दशधा काय वाङ् मानसैस्त्यजेत् ll 22 ll

संदर्भ:-अष्टांगहृदय सूत्रस्थान अध्याय 2


दस निंदित कर्म है 

            शारीरिक,वाचिक, मानसिक 

दस निंदित कर्म है - इन्हे त्याग दे 


शरीर से होने वाले निंदित 3 कर्म -

हिंसा,

चोरी, 

अगम्य स्त्री से संयोग


वाचा से होने वाले निंदित 4 कर्म -

 चुगली 

कठोर वचन 

झूठ बोलना 

असंबद्ध बोलना 

मन से होने वाले 3 निंदित कर्म - 

दुसरोंको हानि पहुँचाने का विचार 

दुसरोंके गुण को न सहन होना ईर्षा/दुसरे के धन की इच्छा 

नास्तिकता, आप्त वचन मे श्रद्धा न करना 

 स्वस्थवृत्त,दिनचर्या,ऋतुचर्या,आहार विहार विधी का पालन नही करना l उपस्थित मल ,मूत्र इत्यादी वेग धारण करना इत्यादी 

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Vd Pratibha Bhave 

Sukhkarta Ayurvedic Panchkarma and fertility center Pune 

8766740253

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