अहितं त्रिविधो —--
अर्थे: असात्म्यै संयोग: काल: कर्म च दुष्कृतम् l
हीनाति मिथ्यायोगेन भिद्यते तत्पुनस्त्रिधा ll 35ll
अष्टांगह्रदय सूत्रस्थान 12
प्रथम कारण - विषयोंका इंद्रियों से असात्म्य संपर्क
-शब्द, स्पर्श , रुप, रस, गंध इन विषयों के साथ इंद्रियों का बहोत ज्यादा, बहूत कम या विषम संपर्क होना
5 इंद्रिये:-
श्रोतेंद्रिय-ध्वनि ,शब्द की अनुभूति के लिए।
स्पर्शेंद्रिय- स्पर्श की अनुभूति के लिए।
चक्षुरेंद्रिय-रूप ,दृश्य की अनुभूति के लिए।
रसनेंद्रिया -रस (स्वाद) की अनुभूति के लिए।
घ्राणेंद्रिय-गंध (खुशबू) की अनुभूति के लिए।
विषयोंसे बहुत ज्यादा , बहुत कम या विषम संयोग
जैसे तेज प्रकाश मे किताब पढना , या बिलकुल मंद प्रकाश मे पढना,
या लेटे हुए- किताब आँखोंके बहुत नजदीक पढना l
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द्वितीय कारण - काल है
-काल याने ऋतु. ऋतु के लक्षण अल्प, बहुत या विषम होना.
वय- जैसे बाल, वृद्धा
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तृतीय कारण कर्म है
इसी को प्रज्ञापराध कहते हैं l
प्रज्ञा= बुध्दी
बुध्दी से अपराध होने से भी रोग होते हैl आयुर्वेद मे दस प्रकारके कर्मो की निंदा की है
दस निंदित कर्म है - इन्हे त्याग दे
हिंसास्तेया न्यथाकामं पैशुन्यं परुषानृते ll 21 ll
सम्भिन्नालापं व्या पा द म भिध्यां दृग्विपर्ययम् l
पापं कर्मेति दशधा काय वाङ् मानसैस्त्यजेत् ll 22 ll
संदर्भ:-अष्टांगहृदय सूत्रस्थान अध्याय 2
दस निंदित कर्म है
शारीरिक,वाचिक, मानसिक
दस निंदित कर्म है - इन्हे त्याग दे
शरीर से होने वाले निंदित 3 कर्म -
हिंसा,
चोरी,
अगम्य स्त्री से संयोग
वाचा से होने वाले निंदित 4 कर्म -
चुगली
कठोर वचन
झूठ बोलना
असंबद्ध बोलना
मन से होने वाले 3 निंदित कर्म -
दुसरोंको हानि पहुँचाने का विचार
दुसरोंके गुण को न सहन होना ईर्षा/दुसरे के धन की इच्छा
नास्तिकता, आप्त वचन मे श्रद्धा न करना
स्वस्थवृत्त,दिनचर्या,ऋतुचर्या,आहार विहार विधी का पालन नही करना l उपस्थित मल ,मूत्र इत्यादी वेग धारण करना इत्यादी
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Vd Pratibha Bhave
Sukhkarta Ayurvedic Panchkarma and fertility center Pune
8766740253
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